17 सितंबर से श्राद्ध पक्ष की शुरुआत हो गई है। पितृ पक्ष में कौओं को भोजन कराने की परंपरा है। एक तरफ शहरों में कौए दिख नहीं रहे, तो दूसरी तरफ एक छत ऐसी है, जहां सैकड़ों कौए रोज दाना खाने के लिए आते हैं।
रायगढ़ के वृंदावन क्षत्रिय हर रोज 30 किलो दाना डालते हैं। पेशे से होटल व्यवसायी हैं, उन्होंने होटल की छत पर लोहे की पाइप और बांस से कोऔं के लिए बैठने की व्यवस्था भी की है। दाना-पानी के लिए छत पर रोज 500 से ज्यादा कौए आते हैं।
लोग अब इस जगह को कौओं की छत के नाम से भी जानते हैं। वृंदावन के मुताबिक ये करीब 40 साल से आ रहे हैं।

क्षत्रिय ने बताया कि होटल के पीछे उनका मकान है और वहीं पीपल का पेड़, जिसमें सुबह 4-5 बजे से कौओं का आना-जाना शुरू हो जाता है।
कौओं की आवाज सुनकर वे अपने होटल स्टाफ के साथ हाथों में दाना लेकर छत पर पहुंच जाते हैं। होटल स्टाफ दाना छत पर छोड़कर तुरंत वापस आ जाता है।

वृंदावन क्षत्रीय ने बताया कि छत पर उनके अलावा किसी और की मौजूदगी कौए पसंद नहीं करते। वे दूसरे पेड़ों पर बैठकर देखते रहते हैं और जैसे ही छत पर वृंदावन अकेले होते हैं, धीरे-धीरे उनका आना शुरू होता है।
वृंदावन ने छत पर कौओं के बैठने के लिए अलग से बांस और लोहे की पाइप की व्यवस्था की है, जिसमें वो आकर बैठना शुरू कर देते हैं।
वृंदावन ने बताया कि उनकी माता पहले घर पर छप्पर पर कौओं को दाना डालतीं थीं। रोजाना वे कौओं को दाना देती थीं, इसके बाद हर दिन कौओं की संख्या भी बढ़ने लगी।
1984 से वृंदावन क्षत्रीय भी घर के छप्पर पर ही दाना देने लगे, लेकिन 1990 में जब घर के सामने उन्होंने होटल बनाया तो होटल के सामने ही दाना डालते थे।
होटल की छत 1994 में तैयार हुई उसके बाद छत पर इन्हें दाना दिया जाने लगा।
कौओं के लिए तैयार किए गए छत पर धीर-धीरे अब दूसरे पक्षी भी आने लगे हैं। शुरू में गौरैया भी आती थी, लेकिन अब वे नजर नहीं आते पर कबूतरों की संख्या बढ़ने लगी है और अब छत के एक ओर कौए तो दूसरी ओर कबूतर एक साथ दाना चुगते हैं।
इनके लिए छत पर ही पानी के लिए छोटी-छोटी टंकी भी बनाई गई है। ताकि दाना खाकर वे पानी पी सके।
कौए सैकड़ों की संख्या में आते हैं, लेकिन गर्मी के दिनों में इनकी संख्या कम हो जाती है। वृंदावन ने बताया कि गर्मी के दिनों में ये बच्चा देते हैं तो उन्हें छोड़कर दूर से नहीं आते।
तब कम दाना दिया जाता है, लेकिन जुलाई के बाद इनकी संख्या पहले से अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि तब तक कौए के बच्चे भी इसमें शामित हो जाते हैं।
पंडित धीरजकृष्ण शास्त्री के मुताबिक हिंदू धर्म में कौवों को पितरों का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि यह मान्यता है कि पितरों की आत्माएं कौए के रूप में आकर अपने वंशजों से भोजन और पूजा ग्रहण करती हैं।
यह मान्यता श्राद्ध और पितृ पक्ष के दौरान विशेष रूप से प्रचलित है।

पितृ पक्ष 17 सितंबर से शुरू हो गया है जो 2 अक्टूबर तक चलेगा। हिंदू धर्म में मान्यता है कि पितृ पक्ष में गाय, कुत्ते और चींटी को भी भोजन कराने से पितरों को शांति मिलती है।
पितृ पक्ष में गाय को भोजन कराने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है। इसके अलावा, पितृ पक्ष में कुत्ते को भोजन कराने से पितरों की आत्मा को संतुष्टि मिलती है।
। साथ ही इस खानपान के इतिहास और सेहत के फायदों से भी आपको रूबरू कराएंगे।
ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध का भोजन इतना सात्विक होना चाहिए कि मन में तामसिक विचार न आएं और मन भी शांत रहे। पितृपक्ष में ज्यादा तला-भुना और मसालेदार खाना खाने से बचना चाहिए।
इस दौरान घी से ऐसे पकवान बनाए जाते हैं, जो पितरों को पसंद रहे हों। भोजन में गंगाजल, दूध, शहद, कुश तो होना ही चाहिए। मगर, खानपान में चावल, काला तिल और उड़द होना जरूरी है।
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